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Monday, June 20, 2011

कभी-कभी बस यू ही

कभी-कभी बस यू ही,
ये दिल जब तुम्हे ढूदने निकलता है!
तुम एक छाव बनकर चुपके से आती हो,
मै आँखें बंद करता हूँ,
और तुम बस मुझे छूकर निकल जाती हो!

कभी-कभी बस यू ही,
ये दिल जब संग परछाइयों के चलता है!
तूम हर मोड़ पर खड़ी नजर आती हो,
मै चाह कर भी नहीं रुक पता हूँ,
और तुम हाथ हिलाते हुए दूर निकल जाती हो!!

कभी-कभी बस यू ही,
जब बादल आँखों में रुक जाते है!
तुम बनके अहसास उन्हें उदा ले जाती हो.
मै कहीं रो ना दू तन्हाई में,
तुम मेरी पलकों को बस चूम कर निकल जाती हो!!

कभी-कभी बस यू ही,
जब बेंचेनियाँ होती है यादों में,
तुम अहसास बनकर सिमट आते हो!
लाते हो नींद को ऊँगली थामे मेरे पास तुम,
भेज कर मुझे सपनो की दुनिया में ,,...दूर कहीं तुम निकल जाते हो .................

1 comment:

Anonymous said...

touching lines